महिला सशक्तिकरण की ओर: एक नई सोच, एक नया संकल्प
8 March 2025 20:15 IST
| लेखक:
The Pillar Team
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आज मैं आपको एक कहानी सुनाने जा रही हूं यह कहानी है गौरी की जो एक छोटे से गांव में पैदा हुई थी उसकी मां हमेशा कहती थी की बेटा पढ़ लिख कर कुछ बन जाना ताकि तुझे किसी पर निर्भर न रहना पड़े गौरी पढ़ाई में अच्छी थी लेकिन जब दसवीं पास कर ली तो घर वालों ने कहा अब बस शादी की तैयारी करो लड़की ज्यादा पढ़ेगी तो घर कैसे संभालेगी?
गौरी ने लड़ाई लड़ी जैसे कई और लड़कियां लड़ रही है खुद से और समाज से किसी का सपना डॉक्टर बनने का है किसी का इंजीनियर किसी का पायलट किसी का मॉडल लेकिन समाज की बेड़ियां और आत्मविश्वास की कमी इन्हें रोकने की कोशिश करती है आज हम जब महिला दिवस की बात करते हैं तो सवाल उठता है क्या सच में हालात बदले क्या महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिला है लिए कुछ आंकड़ों फैक्स और रिसर्च के जरिए सच्चाई जानते हैं।
सबसे पहले आपको यह बताऊंगी कि आखिर महिला दिवस की जरूरत क्यों पड़ी महिला दिवस की शुरुआत 1909 में अमेरिका में हुई जब महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई 1911 में पहली बार इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया गया 1975 में un ने इसे आधिकारिक रूप से मान्यता दी।
लेकिन 2025 में भी क्या महिलाओं को उनका हक मिल पाया है।
यदि शिक्षा में भागीदारी की बात करो तो भारत में महिला साक्षरता दर 70% है जबकि पुरुषों की 85% ग्रामीण इलाकों में हर पांच में से एक लड़की स्कूल छोड़ देती है stem यानी science technology engineering maths में भारतीय महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 29% है।
यदि रोजगार और सैलरी में असमानता की बात करूं भारत में महिलाओं की वर्कफोर्स में भागीदारी सिर्फ 25% है महिला कर्मचारियों को पुरुषों की तुलना में औसतन 28% कम वेतन मिलता है भारत की 100 टॉप कंपनियों में सिर्फ पांच प्रतिशत सीईओ महिलाएं हैं।
अब अगर राजनीति और निर्णय लेने की भूमिका में देखा जाए तो 2024 लोकसभा चुनाव में सिर्फ 14 प्रतिशत सांसद महिलाएं थी पंचायती राज में 50% आरक्षण के बावजूद महिलाओं को नाम मात्र ही भूमिका दी जाती है।
इसके बाद बात करते हैं महिलाओं के खिलाफ अपराध की जिसके चौंकाने वाले आंकड़े हैं हर तीन में से एक महिला को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है हर घंटे एक महिला दहेज की वजह से मारी जाती है #metoo आंदोलन के बावजूद 90% महिलाएं कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज नहीं कर पाती क्या यही बराबरी है?
लेकिन सिर्फ नेगेटिव बातें ही नहीं है कुछ पॉजिटिव बदलाव की कहानी भी है जिन्होंने महिलाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है।
कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष में भारत का नाम रोशन किया मैरी कॉम और पीवी सिंधु ने वर्ल्ड लेवल पर भारत का प्रथम लहराया फाल्गुनी नायर nyka और किरण मजूमदार शॉ biocon और ऐसी कई और महिलाएं है जिन्होंने सभी क्षेत्रों में अपनी लीडरशिप साबित कर कर महिलाओं का नाम ऊंचा किया है पर क्या यह कुछ गिनी चुनी महिलाओं की सफलता ही काफी है?
मैं कहती हूं कि बदलाव लाने का समय आ गया है महिला दिवस सिर्फ एक दिन मनाने की चीज नहीं है बल्कि एक चेतावनी है कि हमें और मेहनत करनी है महिलाओं को असली हक तभी मिलेगा जब घर में बेटा बेटी को बराबरी का दर्जा मिलेगा सैलरी में लिंग भेदभाव खत्म होगा महिलाएं राजनीति और लीडरशिप में खुलकर आएंगी।
अगर आपको कभी लगे कि आप कमजोर हैं तो याद रखिए अपने जीवन दिया है, आप ही शक्ति का स्रोत है कोई आपको बताएं कि आप यह नहीं कर सकती तो अपनी मेहनत और हौसले से उन्हें गलत साबित कर दो सशक्तिकरण का मतलब सिर्फ दूसरों से अधिकतर मांगना नहीं है बल्कि खुद को इतना मजबूत बनाना है की कोई हक छीन ना सके हर लड़की हर महिला अपने अंदर एक अनमोल ताकत रखती है इस महिला दिवस पर खुद से वादा कीजिए खुद पर विश्वास करें अपने सपनों के लिए लड़े और किसी भी हाल में कभी हार ना माने
क्योंकि आप सिर्फ एक महिला नहीं है आप संभावनाओं का एक पूरा ब्रह्मांड है इसी के साथ a very happy women’s day
खुद से प्यार करो खुद को सम्मान दो क्योंकि आप इसकी हकदार हो।