जाट सम्राट अनंगपाल तोमर द्वितीय के दादा जी दिल्लीपति जाट सम्राट सलकपाल तोमर (सुलक्षण पाल देव) तोमर माघ पूर्णिमा पर शत शत नमन
18 February 2025 16:21 IST
| लेखक:
The Pillar Team
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जाट सम्राट अनंगपाल तोमर द्वितीय के दादा जी दिल्लीपति जाट सम्राट सलकपाल तोमर (सुलक्षण पाल देव) तोमर माघ पूर्णिमा पर शत शत नमन
पुस्तक-पाण्डवगाथा
दिल्ली केतोमर(अर्जुनायन,कुंतल तंवर) राजवंश के राजकुमार गोपालदेव तोमर के पिता का देहांत होने पर ज्योतिषयों ने माघ पूर्णिमा सन 961 ईस्वी का दिन इनके राज तिलक के लिए निश्चित किया
संयोगवश इस शुभ घड़ी (माघ पूर्णिमा सन 961 ई.) में इनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ। महाराजा गोपाल देव ने इसे शुभ लक्षण वाला सुयोग्य पुत्र मानते हुए सुलक्षण पाल नामकरण किया
यही सुलक्षण पाल देव इतिहास में सलकपाल देव , सुलखपाल, सलवन के नाम से प्रसिद्ध हुआ
राजस्थानी ग्रंथो में इनको रावलु सुलक्षण तंवर नाम से पुकारा है।
इनका विवाह राजल देवी देशवाल से हुआ
इनके छोटे भाई जयपाल तोमर का विवाह भी देशवाल गोत की इस राजल देवी की छोटी बहिन से हुआ था।
महारानी राजल देवी को बडी माता के रूप में आज भी पूजा जाता है जिसका मंदिर आज भी किशनपुर ग्राम में मौजूद है।
महाराजा सलकपाल के सात पुत्रो का नाम निम्न प्रकार से है-
- रामपाल तोमर
- महिपाल तोमर
- कृष्णपाल तोमर
- चंद्रपाल तोमर
- हरिपाल तोमर
- शाहोनपाल (शाहपाल) तोमर
7 देशपाल सिंह
बड़ौत कि चौधराण पट्टी ,नई बस्ती ,ब्लाक बिल्डिंग के पास सलकपाल का भूमिया हुआ करता था इनकी समाधी बड़ौत में है।
महाराजा सलकपाल देव ने 18 वर्ष 3 माह 15 दिन कि आयु में सन 979 ईस्वी में दिल्ली (समंत देश ) कि गद्दी पर बैठे थे उस समय तक तोमर राज्य को अनंग प्रदेश या समन्त देश के रूप में जाना जाता था । इस क्षेत्र के निवासी सभी गोत्र के जाटों को आज भी देशवाली जाट बोलते है।
सन 1005 ईस्वी में 43 वर्ष 1 माह और 25 दिन कि आयु में राज सिहांसन अपने छोटे भाई जयपाल को सौप के खुद वांनप्रस्थ आश्रम ग्रहण कर समचाना में गढ़ी बना कर रहने लग गए थे । इस गढ़ी को आज भी देखा जा सकता है इस जगह को आज भी तोमर जाटों का खेड़ा बोला जाता है।
यमुना और कृष्णा नदी के बीच के भाग में घना वन था यह स्थान डाकूओ का आश्रय स्थल बन चूका था । अपने भाई के आग्रह पर इन्होने यमुना और कृष्णा के बीच के बसे इन भयकर डाकुओ का समूल नाश किया फिर स्थायी रूप से शांति स्थापित करने के उद्देश्य से यहां जाटों की गणतंत्रात्मक चौधराठ शुरू की प्रारभ में 84 गाव बसा चौधराठ का समाज शुरू किया जिसको आज देश खाप के रूप में जाना जाता है । और इनके वंशज तोमरो को सलकलान तोमरो के नाम से जाना जाता है।
तोमर देश खाप के 84 गांवों में सबसे पहले चौधराठ:
- बडौत में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी रामपाल तोमर ने आयोजित की।
- बावली में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी राव महिपाल तोमर ने आयोजित की।
- किसानपुर (किशनपुर) बिराल में 14 गांवों की पहली चौधरत कृष्णपाल तोमर ने आयोजित की।
- बिजरौल में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी चंद्रपाल तोमर ने आयोजित की।
- बामडौली में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी हरिपाल तोमर ने आयोजित की।
- हिलवाड़ी में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी शाहोपाल (शाहपाल) तोमर ने आयोजित की।
एक महान जाट योद्धा गोपालपुर खनडाना बुंदेलखंड चला गया वह वहाँ बसे और सलकरान चौधरत शुरू की व बाद में एक राजपूत महिला से शादी की और अपने श्वसुर (ससुर ) की जागीरी शिवपुरी का जागीरदार बन गया तो उसके वंशज राजपूतो में सम्मलित हो गए इसलिए आज भी वो तोमर अपना गोत्र पूछने पर व्याघप्रस्थ (बाघपत ) ही बता ते है।जो उनके पूर्वज के निमवास स्थान बाघपत का प्राचीन नाम है।
देशखाप की चौधर पट्टी चौधरान मे है।
देश खाप की सात थांबें ये थांबें देशखाप के अधीन काम करती हैं।
थांबा चौधरी
- बावली
- किशनपुर बराल
- बामनौली
- बिजरौल
- पट्टी मेहर
- पट्टी बारू
- हिलवाड़ी
समंत देश के तोमर राजा कि मुद्रा काबुल ,लाहोर ,आगरा , किशनपुर बराल, काठा (बाघपत ) से प्राप्त हुई है जिन में एक और श्री समन्त देव और इनका नाम सलकपाल अंकित है • हिन्दूग्रंथ देव सहिंता में जाटों की उत्पत्ति भगवान शिव से बताई गयी है जाटों का वर्णन शिव के गण नंदी के रूप में भी किया गया है साथ ही दिल्ली के तोमर राजाओ के सिक्को के एक तरफ नन्दी का चित्रण हैं