यह लेख 19 October 2023 का है।
हे राम ! मैं तुम्हारी अयोध्या नहीं हो सकती।
19 October 2023 22:24 IST
| लेखक:
The Pillar Team
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सरयू नदी के किनारे बसी मैं अयोध्या। कहते हैं मेरा महत्व प्राचीन इतिहास में निहित है क्योंकि मैं भारत के प्रसिद्ध और प्रतापी क्षत्रियों की राजधानी थी। मेरा वजूद उस समय अस्तित्व में आया जब आदिकाल में ब्रह्मा जी ने भगवान सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु को पृथ्वी का प्रथम राजा बनाया। रामायण के अनुसार मेरी स्थापना राजा मनु ने की थी। सूर्य पुत्र होने के कारण मनु सूर्यवंशी कहलाये और इनसे चला वंश सूर्यवंश। इसी वंश में आगे चल कर राजा रघु हुये, जिससे यह वंश रघुवंश के नाम से जाना गया। मेरी ही धरती पर इक्ष्वाकु, ककुत्स्थ, हरिश्चंद्र, मांधाता, सगर, भगीरथ, अंबरीष, दिलीप, रघु, चक्रवर्ती सम्राट दशरथ और मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसे प्रबल प्रतापी राजा जन्मे।

इतनी विशाल पहचान समेटे आज मैं अपनी पहचान को तरस रही हूं। सरयू की कल-कल करती धारा मुझ पर अट्टहास करती है। मुझे ऐसा लगता है कि मेरी पहचान आपके साथ ही सरयू में समा गई। मैं अपनी हालत देखकर खुद पर तरस खाती हूं। वेदों में मुझे ईश्वर का नगर बताया गया है, “अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या” और मेरी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है लेकिन वास्तविक रूप में आज मैं खंडहर की नगरी बन चुकी हूं, मेरी गोद में बैठे आप यानि रामलला आज संगीनों के साये में हैं। प्रभु आपने ही कहा था कि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ लेकिन आज आपकी जन्मभूमि को सलाखों में घेरा गया है, मेरे कण-कण से उठती आपके नाम की धुन बंदूकों के बटों तले दबा दी जाती है। इतना ही नहीं, जब-जब मेरी धूलि आपके दर्शनों की अभिलाषा में उठती है, जवानों के कदम उसे रौंद देते हैं।

आपसे जुड़ी मेरी हर निशानी को तहस-नहस कर दिया गया है। हे राम, आप मेरी विरह वेदना सुनिए, क्या मैं वही अयोध्या हूं, जहां आपने जन्म लिया था ? कहते हैं कलयुगी राक्षसों ने इसकी शुरुआत सन 1528 में की थी, जब मेरे अस्तित्व को मिटाने के लिए मेरी छाती पर पहला कुठाराघात किया गया था। भारत के पहले मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर उसके क्रूर सेनापति मीर बाकी ने आपके महल को तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी थी और तभी से मेरी पहचान तुमसे कम, तुम्हारे नाम पर होने वाले फसादों से ज्यादा होने लगी।

साल 1853 में विवादित भूमि को लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच झगड़े की पहली घटना औपचारिक रूप से दर्ज हुई। पहली बार इस स्थान के आसपास दंगे हुए। साल 1859 में अंग्रेजों ने विवादित स्थल के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को विवादित ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की अनुमति दी गई। साल 1885 में महंत रघुबीर दास ने अदालत में याचिका दायर करते हुए मस्जिद के बाहर राम चबूतरा बनवाने की अनुमति मांगी, जिसे फैजाबाद कोर्ट ने खारिज कर दिया। प्रभु, कहते हैं उत्तर प्रदेश में 22 दिसंबर 1949 की रात अयोध्या को घेरने की जमीन तैयार की जा रही थी कि सुबह करीब 3 बजे अचानक से बिजली चमकी और आपका बाबरी मस्जिद में प्रागट्य हुआ और इसे चमत्कार मानकर इस पर विश्वास कर लिया गया। विवाद बढ़ा तो सरकार ने जिला मजिस्ट्रेट केके नायर को कार्रवाई के निर्देश दिए। इसके बाद इसे विवादित ढांचा मानकर परिसर में ताला लगवा दिया गया। साल 1950 में दो हिंदू पुजारियों ने फैजाबाद कोर्ट में फिर से आपकी पूजा के लिए अनुमति मांगी। जज एनएन चंदा ने पूजा की अनुमति दे दी, जबकि आंतरिक आंगन बंद रखा गया।
साल 1959 में निर्मोही अखाड़े ने विवादित ढांचे का तीसरा पक्ष बनते हुए अपना मुकदमा दर्ज कराया। अखाड़े ने विवादित भूमि पर स्वामित्व का दावा करते हुए अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर हटाने की मांग की। उसने खुद को इस स्थल का संरक्षक बताया। 18 दिसंबर 1961 को सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित स्थल से मूर्ति हटाने और बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया। साल दर साल बीतते गए, फिर वर्ष 1984 में राम मंदिर बनाने के लिए हिंदू समुदाय ने एक समिति बनाई और मंदिर बनाने के लिए आंदोलन की शुरुआत की।
साल 1986 में विवादित स्थल का ताला खोला गया, फैजाबाद अदालत ने हिंदुओं को पूजा की अनुमति दी। मुस्लिम समुदाय ने इसका विरोध किया और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन हुआ। प्रभु, अब तक मैं यानि अयोध्या पूरी तरह राजनीति का रंगमंच बन चुकी थी। कोई मेरे प्रति लोगों की आस्था से खेल रहा था, तो कोई आपके नाम से। किसी ने मुझे हिंदू वोटों का जरिया बनाया तो किसी ने मुस्लिमों के तुष्टीकरण का। अब मैं आस्था और विश्वास की पावन भूमि नहीं बल्कि सत्ता और वोट की लड़ाई का अखाड़ा बन चुकी थी। जिसका जब मन किया, उसने वैसा खेल मेरे साथ खेला। इस बीच मैं रामचरित मानस की चौपाइयों की तरह राजनीतिक घोषणापत्रों के वादों में नज़र आने लगी।
साल 1989 में एक राजनीतिक पार्टी ने राम मंदिर आंदोलन चला रहे एक संगठन को औपचारिक समर्थन देकर मंदिर आंदोलन को नवजीवन दिया। 1 जुलाई 1989 को आपके यानि रामलला विराजमान के नाम से पांचवां मुकदमा दाखिल किया गया। 9 नवम्बर को तत्कालीन प्रधानमंत्री की सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले बाबरी मस्जिद के निकट शिलान्यास की अनुमति दी और एक संगठन ने विवादित ढांचे के नजदीक राम मंदिर निर्माण की नींव रखी। साल 1990 में मंदिर का पक्षधर बताने वाली पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष ने 25 सितम्बर को सोमनाथ से मुझ तक रथ यात्रा निकाली। इस दौरान साम्प्रदायिक दंगे हुए, कारसेवक मेरी धरती पर जमा हुए और विवादित ढांचे को क्षतिग्रस्त किया गया। और मेरे सीने में पुलिस ने गोलियां दागीं जिसमें कई लोग मारे गए। अब तक मैं देश की सत्ता की चाबी बन चुकी थी। मंदिर की पक्षधर पार्टी ने उस समय की केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
साल 1991 में मंदिर की पक्षधर पार्टी को सूबे की सत्ता मिली। सत्ता में आते ही मंदिर निर्माण की आवाजें उठने लगीं और कारसेवक बड़ी तादाद में तुम्हारी इस नगरी में जुटने लगे। उसी साल अक्टूबर महीने में प्रदेश सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ जमीन को अपने अधिकार में ले लिया और उसके बाद 6 दिसंबर 1992 में कारसेवकों ने मेरे सीने पर खड़े विवादित ढांचे को ढहा दिया। जिसके बाद देश में सांप्रदायिक दंगे हुए। उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद सूबे की सरकार बर्खास्त कर दिया। ढांचा गिराए जाने के दस दिन बाद 16 दिसंबर को जांच के लिए एमएस लिब्रहान आयोग का गठन हुआ। इस आयोग को तीन महीने में रिपोर्ट देनी थी, लेकिन रिपोर्ट देने में 17 साल लग गए। साल 1997 में विवादित ढांचा गिराने के मामले पर विशेष अदालत ने 49 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर करने का आदेश दिया।

प्रभु, अब मैं ऐसे दौर में आ चुकी थी जहां मुझे आस भी थी और विश्वास भी। आपके दरबार की तरह यहां भी एक दरबार लगता है जहां लोगों के भाग्य का हिसाब किताब किया जाता है। जिंदगी और मौत मुकर्रर होती है। यानि अदालत जहां मेरे भी भाग्य का फैसला सुनिश्चित होना है कि मेरा वजूद है या नहीं आप का जन्म मेरी ही गोद में हुआ था या नहीं, आप हैं या नहीं ?
साल 2001 में एक संगठन ने अगले ही साल यानि 2002 में आपके मंदिर निर्माण की डेडलाइन तय की। 2002 में एक संगठन के दबाव में अयोध्या में धार्मिक गतिविधियों पर रोक के ‘अंतरिम आदेश’ को हटाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। अप्रैल में विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की और दूसरी तरफ तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इस विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत की पहल की। साल 2003 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर पुरात्त्व सर्वेक्षण विभाग ने फिर से मेरी छाती चीर कर उसमें आपके होने के सबूत निकाले। मार्च-अगस्त में पुरात्त्व सर्वेक्षण विभाग ने यह सिद्ध किया कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। एक उम्मीद जगी कि हो सकता है फिर मेरे वजूद को पहचान मिले। साल 2005 आया जो मेरे लिए और भी कष्टकारक था जुलाई महीने में संदिग्ध आतंकियों ने विस्फोटकों भरी जीप का इस्तेमाल करते हुए विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने पांच आतंकियों को मार गिराया।
अब मुझ पर दुखों का एक और पहाड़ टूटने वाला था क्योंकि अब वो दौर को देखने का वक्त आ गया था जिसकी आहट से ही कलेजा कांप जाए। एक राजनीतिक पार्टी ने आपको यानि राम को कल्पना बताते हुए आपके होने पर ही सवाल खड़े कर दिये। साल 2007 में तत्कालीन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कहा था कि राम के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं और इस बात के कोई पुख्ता साक्ष्य भी नहीं हैं कि ‘राम-सेतु’ का निर्माण आपकी सेना ने किया था। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस बात की पुष्टि की गई है कि भारत और श्रीलंका के बीच स्थित ‘राम सेतु’ संरचना मानव निर्मित है। ‘राम सेतु’ एक प्राकृतिक संरचना नहीं हो सकती और इसे मनुष्यों द्वारा ही बनाया गया होगा।
साल 2009 के जुलाई महीने में 17 साल बाद लिब्रहान आयोग ने उस समय के प्रधानमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी। साल 2010 मेरी उम्मीदों को नए पंख लगाने वाला साल था। उसी साल 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया। 30 सितम्बर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का निर्णय दिया। जिसके अनुसार 2.77 एकड़ विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्सा किए जाए। राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया। राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया गया और बाकी बचा हुआ तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया।
साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को विचित्र बताते हुए कहा कि किसी भी पक्ष ने जमीन का बंटवारा नहीं मांगा था। हाईकोर्ट के फैसले पर स्थगन का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई शुरू की।

प्रभु, अब दो अदालतों की लड़ाई जारी है एक है आपकी अदालत जहां पलभर में व्यक्ति के भाग्य का फैसला होता है और एक कलयुगी अदालत जहां तारीख और सिर्फ तारीख मुकर्रर होती है। पहले 4 जनवरी 2019 फिर 10 जनवरी और अब एक नई तारीख मिली है 29 जनवरी जहां ये तय होगा कि मेरी इस करुण व्यथा को कौन सुनेगा ? प्रभु ये आपके नाम की सौगन्ध खाते हैं, मरने पर सिर्फ आपके नाम को सत्य कहते हैं, आपके जन्म के दिन अवकाश मनाते हैं लेकिन इन्हे सबूत चाहिए कि मेरा अस्तित्व है या नहीं, आपकी जन्मभूमि मैं हूं या नहीं ? प्रभु, हर बार मेरी उम्मीदों, मेरी आशाओं और मेरे विश्वास का मजाक उड़ाया जाता है। चुनावी मौसम में मेरे इतने सगे संबंधी निकलते हैं लगता इस बार आपको छत नसीब हो जाएगी लेकिन चुनावी मौसम निकलने के बाद वो महलों और कोठियों में आराम फरमाते हैं और आपकी जन्मभूमि को एक अदद तिरपाल दिलाने के लिए अदालत का ढोंग करते हैं। प्रभु, मैं वो अयोध्या हूं जिसे आज तक कोई योद्धा जीत नहीं सका लेकिन मैं हार गई कलयुगी अदालतों से, मौकापरस्त सफेदपोशों से, दिखावटी आस्थावानों से। मैं कैसे आपकी अयोध्या हो सकती हूं, जो अपने वजूद, और अस्तित्व को ही न बचा पाए।
प्रसून पाण्डेय ‘परमार्थी’