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हनुमान बैनीवाल: जनता के संघर्ष का नया प्रतीक

हनुमान बैनीवाल: जनता के संघर्ष का नया प्रतीक


आपने कई बार देखा होगा—नेता अपनी भीड़ के साथ किसी अधिकारी को ज्ञापन देने पहुँचते हैं। भीड़ आती है, नारे लगते हैं, कुछ घंटे बाद थक-हारकर वापस चली जाती है।

लेकिन… पहली बार हम ऐसे नेता की बात कर रहे हैं, जिसके पास खुद प्रशासनिक अधिकारी चलकर ज्ञापन लेने आते हैं। नाम है—हनुमान बैनीवाल।

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जहाँ दूसरे नेताओं का आंदोलन 3-4 घंटे में ठंडा पड़ जाता है, वहीं बैनीवाल का आंदोलन तब तक चलता है… जब तक प्रशासनिक अधिकारी खुद मंच पर आकर उनकी मांगें मान नहीं लेते। चाहे सुबह से रात के 2 बजे हो या 4 बजे—सभा और आंदोलन जारी रहता है।

सबसे ख़ास बात, यहाँ भीड़ किसी सरकारी इंतज़ाम या बुलावे से नहीं आती। ये तो जनता का सैलाब होता है—स्वयंभू, बेकाबू और रिकॉर्ड तोड़। सड़कें जाम, रास्ते ब्लॉक और कारों का ऐसा क़ाफ़िला कि जहाँ तक नज़र जाए गाड़ियों की लाइन खत्म ही न हो।

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इतनी भीड़, ऐसा जुनून… आपने शायद ही किसी क्षेत्रीय नेता के लिए देखा होगा। बल्कि बड़े-बड़े राष्ट्रीय नेताओं के साथ भी ऐसा नज़ारा बहुत कम देखने को मिलता है।
क्योंकि हनुमान बैनीवाल के एक आवाहन पर जनता टूट पड़ती है। और मुद्दे भी वही होते हैं—जनता के, जनता के लिए।

आंदोलन स्थल पर भोजन-पानी चलता रहता है, लोग डटे रहते हैं। लेकिन तब तक मंच खाली नहीं होता… जब तक सरकार का कोई प्रतिनिधि मंच पर आकर बैनीवाल के साथ खड़ा होकर मांगों को मान न ले।

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इसीलिए लोग कहने लगे हैं—हनुमान बैनीवाल संघर्ष का नया प्रतीक हैं। जनता को लगने लगा है कि कोई तो है, जो उनके लिए, उन्हीं के बीच खड़ा रहता है। यही कारण है कि लोग उन्हें अपना सहारा मानने लगे हैं… और अपने भविष्य की उम्मीद भी।


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