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बालू सिंह डागुर: जगरोठी के वीर जाट योद्धा

बालू सिंह डागुर: जगरोठी के वीर जाट योद्धा


बालू सिंह डागुर का जन्म करौली जिले में प्रसिद्ध जगरोठी क्षेत्र की डागुर चौबीसी में 1638 ईस्वी में हुआ था। इनको बलराम सिंह जाट के नाम से भी जाना गया है।

अकबर के समय  आगरा  सरकार के अधीन हिंडौन एक परगना था । हुकूमत जाटों की 84 के अधीन थी।
आइने ए अकबरी में जगर के डागुर और बेनीवाल गोत्र के जाटों के मध्य यहां की जमींदारी विभाजित थी।

इस चौरासी को ही जगरोठी(जट्ट रोठी) बोला जाता था इस क्षेत्र को जगरोठी बोलने के पीछे दो कारण थे। प्रथम मत यह है। कि यहां जट्ट (जाटों) का शासन होने से जट्टरोठी कहलाता तो जो समय के साथ अपभ्रंश होकर जगरोठी हो गया
दूसरा यहां सत्ता का केंद्र जगर गांव के डागुर के पास होने से जगरोठी नाम प्रसिद्ध हुआ।

बालू सिंह (बलराम) की राजधानी जगर और निकट समान का पुरा में थी। इसके निकट किला का निर्माण जहां करवाया गया उसे आज भी कोटवास बोलते है। कोट का अर्थ किला होता है। इसी कोटवास में जाट शासकों द्वारा निर्मित प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर की प्रतिमा(शिवलिंग )महाभारत कालीन है। लेकिन इसका पक्का निर्माण जाटों ने करवाया था।
कोटवास में 12 खंभों की जाट शासकों की छतरी है।

बलराम सिंह ने मुगलों के इब्राहिमाबाद,हिंडौन, रणथंभोर, मलारना डूंगर क्षेत्र पर नियंत्रण के लिया था ।
सन 1688 ई में मुगल मनसबदार  रामसिंह आमेर की सेनाओं को शेरपुर के युद्ध में धूल चटा दी।

बालू सिंह की वीरता देखते हुए टोडाभीम के लोगों ने भी बालू सिंह को अपना सरदार मान लिया था । बालू सिंह ने बालघाट के मुस्लिम जागीरदार की हत्या कर के उसकी खोपडी को भाले पर लेकर पूरे क्षेत्र में नुमाइश की। अगस्त 1662 को हिंडौन के समीप कमालुद्दीन की बालू सिंह डागुर से युद्ध हुआ जिसमें नूरुद्दीन अफरीदी जाटों के हाथों मारा गया था। मसिरे ए आलमगीरी से इस घटना की जानकारी प्राप्त होती है। कमालुद्दीन पठान के पत्र व्यवहार से यह बात पता चलती है की जाट विद्रोह हिंडौन से रणथम्भोर तक फैला हुआ था इस क्षेत्र पर जाटों का कब्ज़ा था। कमालुद्दीन की नीति जाटों के आगे असफल सिद्ध हुई थी। इसके विपरीत बालू सिंह की प्रसिद्धि क्षेत्र में चारो तरह फैल गई।

रणथंभौर सूबे पर गोपाल सिंह नामक सूबेदार मुगलो ने नियुक्त किया हुआ था। लेकिन इस क्षेत्र का नियंत्रण अजमेर के मुस्लिम सूबेदार के अधीन था जिसने आदेश जारी कर के किले में स्थित गणेश मंदिर में मेला और पूजा की मनाई थी । कहते है कि स्थानीय लोगो ने बालू सिंह से सहायता की याचना की जिसके बाद चौरासी के जाटों ने गोपाल सिंह पर चढ़ाई कर दी। गोपाल सिंह जाट शेरो से डर के किले में छिप गया। इस तरह क्षेत्र में पुनः गणेश उत्सव शुरू हुआ। इस क्षेत्र में स्थायी
जय जाट वंशावली


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